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२३५ ॥ श्री विद्यारण्य स्वामी जी ॥


दोहा:-

विद्यारण्य के बचन को, सुनिये धरि के ध्यान।

राम नाम खुलि जाय जब तब हो आतम ज्ञान॥

गुप्त प्रगट देखन लगै दृष्टि अदृष्टि समाय।

मन्त्र राज तेजो मयी, सन्मुख परै देखाय॥

षट अक्षर गिनि लीजिये बिलग बिलग दर्शाय।

षट बिकार या से मरैं जपिये तो हर्षाय॥

सन्मुख सीता राम जी हर दम दर्शन देंय।

सुर मुनि आवैं पास बहु नित्य बलैया लेंय॥

मुक्ति भक्ति सुख मिलि गयो जियतै में जपि नाम।

अन्त समय हरि पुर चलौ बैठि करौ बिश्राम।५।

श्री गुरु रामानन्द जी मोहिं लीन अपनाय।

चारि पदारथ बाँटि जग दीन्हों यश फैलाय।६।