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२३३ ॥ श्री निजामीदास जी ॥

जारी........

आशिर्वाद सुनाते देखा। आश्रम काग भुशुण्डि क देखा।

सुर मुनि कथा सुनत तँह देखा। बटत तहाँ परसादौ देखा।

गरुड़ै सब को बाँटत देखा। प्रेम से सब तँह पावत देखा।

हनुमत बारि पिआवत देखा। सब को वहाँ से चलते देखा।३००।

फेरि भुशुण्डि अकेले देखा। सुर मुनि सब कैलाश में देखा।

कथा शंभु को कहते देखा। भरद्वाज मुनि आश्रम देखा।

सुनत कथा सुर मुनि सब देखा। याज्ञवल्क मुनि कहते देखा।

उत्तर मुख करि बैठे देखा। नित दरबार जाय कर देखा।

सुर मुनि शक्ति सन्त बहु देखा। शेष को प्रभु के पीछे देखा।३१०।

श्वेत रंग अति भारी देखा। सब ऊपर फन ताने देखा।

सब ता मध्य समाने देखा। चारों बेदन को तँह देखा।

अस्तुति करि फिरि बैठत देखा। राग रागिनी पुत्रन देखा।

गाते साज बजाते देखा। फेरि सबन तँह बैठत देखा।

फिर तुम्बरू को उठते देखा। बीणा बायें हाथ में देखा।३२०।

दहिने हाथ बजाते देखा। मोहक स्वर से गाते देखा।

साज में राग मिलाते देखा। फेरि बैठ तँह जाते देखा।

सभा में एकै रस सब देखा। सतयुग द्वापर त्रेता देखा।

बैठे थे फिर उठते देखा। तीनौ जनन कि स्तुति देखा।

संग खड़े ह्वै करते देखा। एकै स्वर से होते देखा।३३०।

शब्द अलग नहिं होते देखा। करि बिनती फिर बैठत देखा।

श्याम को तब फिर उठते देखा। मुरली तहां बजाते देखा।

सब अन्तर ह्वै जाते देखा। श्री कलियुग महाराज को देखा।

उनकी सब सामाज को देखा। नग्न बदन अति काला देखा।

लोह गदा बिकराला देखा। दहिने कर से साधे देखा।३४०।

रक्खे दहिने कांधे देखा। शिर के केश पगन तक देखा।

बड़े बड़े दांतन निकसे देखा। जीभ नाभि तक लटकत देखा।

मानहु लाल नागिनी देखा। बाम हाथ इन्द्री पर देखा।

दृग दोनो अति लाले देखा। कुरुक्षेत्र रण भूमि को देखा।

कौरव पाण्डव दल तँह देखा। कृष्ण सारथी रथ पर देखा।३५०।

पारथ ता पर बैठे देखा। घोर युद्ध तँह होते देखा।

दोनो सैना कटते देखा। रथ लोथिन पर चलते देखा।

नेकौ नहीं बिछलते देखा। ध्वजा के ऊपर हनुमत देखा।

फिर हुँकार करत तँह देखा। सिंहासन बहु आते देखा।

दिब्य रूप बनि जाते देखा। नाग पुरी बलि पुरी को देखा।३६०।

भांति भांति के भवन को देखा। अमृत कुण्ड भरा तँह देखा।

नागन की रखवारी देखा। जनक पुरी की शोभा देखा।

सिया के बाल रूप को देखा। सिया को धनुष उठाते देखा।

चौदह पग चलि धरते देखा। चौका तहां लगाते देखा।

धनुष तहां फिर धरते देखा। जनक जानि प्रण करते देखा।३७०।

धनुष यज्ञ फिर ठनते देखा। देश देश के भूपन देखा।

एक ते एक बली तँह देखा। धनुष धरा तँह पर फिरि देखा।

उत्तर दक्षिण ओर को देखा। चारि हाथ का लम्बा देखा।

श्वेत रंग चमकीला देखा। चाप हरे मखमल की देखा।

दुइ अंगुल की चौड़ी देखा। बीच में धनु को मोटा देखा।३८०।

एक हाथ भरि नाप के देखा। दोनों तरफ़ से ढारू देखा।

सुन्दर चढ़ा उतारू देखा। धनु ढिग भूपन आते देखा।

कसि कसि ज़ोर लगाते देखा। जरा न जुम्मस खाते देखा।

छोड़ि चलै शरमाते देखा। नीचे मुख लटकाते देखा।

तन मन ते मुरझाते देखा। तन पीले पड़ि जाते देखा।३९०।

जारी........