२३३ ॥ श्री निजामीदास जी ॥
जारी........
कटे को जोरि जिलाते देखा। अपने तन को छोड़त देखा।
दुसरे के तन घुसते देखा। मंतर जंतर तंतर देखा।
तिन में बहु बिधि शक्ती देखा। काली दह हरि कूदत देखा।२००।
भवन में उसके पहुँचत देखा। नागिन बहु तँह आते देखा।
हरि से बैन सुनाते देखा। हरि काली ढिग जाते देखा।
लात से मारि जगाते देखा। काली उठि गुस्साते देखा।
हरि के तन लपटाते देखा। हरि को बदन बढ़ाते देखा।
काली हाय मचाते देखा। काली को कुल धावत देखा।२१०।
हरि को बिनय सुनावत देखा। हरि अंतर ह्वै जावत देखा।
फेरि प्रगट ह्वै आवत देखा। तुरतै काली नाथत देखा।
फन के ऊपर नाचत देखा। अहि पर कमल लदावत देखा।
नागिनि नाग लै आवत देखा। कमल लदाय के चलते देखा।
मुरली अधर पै धरते देखा। मधुर मधुर फिर बजते देखा।२२०।
यमुना के तट आवत देखा। सुर मुनि जय जय करते देखा।
सुमन प्रकाश से गिरते देखा। दुन्दुभि साज़ बजावत देखा।
हरि की कीरति गावत देखा। बृज बासी तँह ठाढ़े देखा।
तन मन प्रेम से गाढ़े देखा। काली को फिर चलते देखा।
हरि के द्वार ठहरते देखा। हरि को तहां उतरते देखा।२३०।
फन से तहां डोरि निकरते देखा। फन पर फूँक को गिरते देखा।
तुरतै छिद्र को पुरते देखा। फूल तहां उतरावत देखा।
नर नारी हरषावत देखा। हरि को ग्रह में जावत देखा।
बेलवा हेम उठाते देखा। तामे पय को नाते देखा।
बूरा घृत मिलाते देखा। अहि के पास लै जाते देखा।२४०।
अहि तब बिनय सुनाते देखा। हरि तब कछु पी लेते देखा।
तब अहि को फिर देते देखा। अहि हंसि प्रेम से पाते देखा।
दिब्य रूप बनि जाते देखा। फिरि चरनन परि जाते देखा।
हरि हंसि उर में लाते देखा। फिरि अन्तर ह्वै जाते देखा।
नर नारी गृह जाते देखा। हरि धीमर प्रगटाते देखा।२५०।
बहेंगा लै बहु आते देखा। कमल लादि सब लेते देखा।
कंस के भौन को चलते देखा। द्वारे जाय उतारत देखा।
कंस को तहां पुकारत देखा। कंस तहां पर आवत देखा।
लखि कै बोलि न पावत देखा। धीमर फूल धरत तहँ देखा।
कंस का द्वार भरत तँह देखा। धीमर तहां बिलाते देखा।२६०।
कंस को फिर पछताते देखा। फेरी कंसल गावत देखा।
फूलन लखि ललचावत देखा। करत दंडवत फूलन देखा।
उठि कै हाथ बढ़ावत देखा। फूलन को फिर गायब देखा।
कंस खड़ा अकुलावत देखा। तन मन ते मुरझाते देखा।
नैन नीर झरि लाते देखा। तब फिरि हुकुम लगाते देखा।२७०।
नन्द को सभा बुलाते देखा। बलराम श्याम संग जाते देखा।
मल्ल अखाड़े लड़ते देखा। दोनो भाई भिरते देखा।
कोई नहीं ठहरते देखा। फील कुबलिया आवत देखा।
हरि बलराम नचावत देखा। हरि तेहिं शुण्डी थाम्हे देखा।
बलिराम पूँछ गहि साधे देखा। ताको फेरि गिरावत देखा।२८०।
दोनो दन्त उखारत देखा। कंस के ढिग हरि धावत देखा।
चोटिया गहि कढ़िलावत देखा। कसिकै फेरि घुमावत देखा।
पटकि के यमुना फेंकत देखा। दिब्य बिमान को आते देखा।
दिब्य रूप ह्वै जाते देखा। उग्रसेन तँह आये देखा।
हरि हँसि तिलक लगाये देखा। नर नारी हर्षाये देखा।२९०।
धन पट भूषन पाये देखा। निज निज गृह को जाते देखा।
जारी........