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१९६ ॥ श्री भस्मासुर जी ॥


चौपाई:-

कीन भजन हर का हम का भाई। दस सहस्र बरषै मन लाई॥

दोनो कर ऊपर को कीन्हा। ह्वै कर खड़े दृगन ढक लीन्हा॥

निर अहार औ मौन धारि कै। ख्याल में हरि के सब बिसारि कै॥

प्रगटे शम्भु शीश कर फेरा। बल तन में ह्वै गयो घनेरा॥

कह्यो शम्भु माँगौ बर मोसे। हौं प्रसन्न भस्मासुर तोसे॥

तब मैं कहा देव बर स्वामी। इच्छा पूरण होय नमामी।६।


दोहा:-

कर जा के सिर पर धरौं तौन होय जरि छार।

यह अभिलाष हमार है दानी आप उदार।१।

एवमस्तु कहि हर चले मैं गृह को चलि दीन।

मारग में नारद मिले हरि के भक्त प्रवीन।२।


चौपाई:-

हाल पूँछि हम से उन लीन्हा। हम सब ठीक ठीक कहि दीन्हा।१।

कह्यौ तुमहिं हर दीन बकाई। ऐसा बर कहिं होत है भाई।२।

भाँग धूतर ज़हर बहु खावैं। उनके बचन न हम पतिआवैं।३।

अक्किल उनकी गई हेराई। अधिक आयु के ह्वै गे भाई।४।


दोहा:-

ऐसी आशिष आज तक हम ने सुनी न कान।

चारों युग में कबहुँ कोइ पायो कहूँ प्रमान॥


चौपाई:-

जाय परिक्षा हर की कीजै। झूठी सांची सब लखि लीजै।१।

तब मेरे मन में यह आवा। नारद बचन ठीक बतलावा।२।

करि प्रणाम नारद को भाई। शम्भु कि ओर चल्यौ रिसिआई।३।


सोरठा:-

लखि हम कीन पुकार खड़े भये शंकर तहां।

बोले बचन उदार भस्मासुर आवत कहाँ॥


चौपाई:-

तब मैं कहा परिक्षा ले हौं। आपै के शिर पर कर देहौं।

भागे शिव सुनि मेरी वानी रपटायौं मैं तन मन मानी।

दुइसै पग का बीच रह्यौ जस। बीचै में श्री हरि प्रगटे तस।

पूँछ्यौ हाल ठीक हम गावा। हरि हँसि कै यह भेद बतावा।

पहले अपने शिर कर धरिये। झूँठ होय तो हरहिं पकरिये।५।

फिर इन्साफ करैं हम तेरो। पहिले बचन मानिये मेरो।

मम मन भयो आय विश्वासा। हरि ने बचन कह्यो यह खासा।७।


दोहा:-

शिर पर अपने कर धरयौं जरि तन ह्वै गो छार।

चढ़ि बिमान तुरतै गयौं हरि के धाम सिधार॥


चौपाई:-

कौन कर्म हम उत्तम कीन्हा। जिन वर दीन तिनहिं दुख दीन्हा॥

पाप कर्म करने के हेता। यह वर माँग्यौं बिगरी नेता॥

नारद धन्य कृपा अति कीन्हा। जो मो को घुमाय तिन दीन्हा॥

मग में हरि के दर्शन पावा। हरि किरपा करि दुःख छुड़ावा॥

हर से बैर कीन्ह सुख पावा। मिल्यो धाम आनँद उर छावा।५।


दोहा:-

भस्मासुर बिनती करै सब से शीश नवाय।

प्रेम भाव करि हरि भजौ जग में फँसौ न भाय॥