साईट में खोजें

१९५ ॥ श्री सुरसा जी ॥


दोहा:-

पवन तनय स्पर्श करि मम तन निर्मल कीन।

अन्त समय हरि पुर गई कौन यज्ञ जप कीन।१।

सुरसा नाम हमार था मातु अहिन की जान।

हरि के भक्त कि कृपा भइ, भयो मोर कल्यान।२।