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१८३ ॥ श्री जानकी जी ॥


वार्तिक:-

श्री अयोध्या पुरी, मधुपुरी, जनक पुरी, काशी पुरी, गया जी, सुदामा पुरी, द्वारिका पुरी, शिव काञ्ची, बिष्णु काञ्ची, मुक्ति भक्ति, त्याग, वैराग्य, ज्ञान, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, कपट, सत्य, दया, धर्म, शान्ति, शील, सन्तोष, दीनता, सरधा, क्षिमा, प्रेम, बिचार, द्वैत, अद्वैत, काम, रति, पाताल लोक, मृत्यु लोक, स्वर्गलोक, चौदह भुवन, सात द्वीप, नौ खण्ड, पृथ्वी देवी, कैलाश, बैकुण्ठ, इन्द्र पुरी, ब्रह्म लोक, गो लोक, साकेत, काली लोक, दुर्गा लोक, सूर्य्य लोक, चन्द्र लोक, नक्षत्र लोक, सिद्ध लोक, दम्भ, पाखण्ड, वेद, शास्त्र, पुराण, उपनिषद, संहिता, गीता, रामायण, महाभारत, वशिष्ठ योग, दुःख, सुख, हानि, लाभ, शोक, भय, परा, पैशन्ती, मध्यमा, बैखरी, माया देवी, इड़ा, पिंगला, सुखमना, चित्रणी, बज्रणी, मन, चित्त, पाप, पुण्य, भूख, प्यास, निद्रा जमुआई, आलस, बल, निर्बल, इच्छा, सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण, मंगल, अमंगल, अन्नदेव, दशोदिशा, अष्ट सिद्धि, नव निद्धि,

बावन बीर, चौंसठि योगिनी, क्षेत्रपाल, यमकाल, मृत्यु, प्राण, जीव, सब दिन, सब तिथि, कृष्ण पक्ष, शुक्ल पक्ष, सब मास, सब नक्षत्र, सब वर्ष, सब राशि, सब ग्रह, सब योग, पला, घड़ी, घंटा, दिनमान, महूर्त, मिनट, सिकन्ड, तुला, मन, सेर, छटांक, तोला, माशा, रत्ती, अणु, सब विद्या, सन, सम्वत, शाके, फसली, ईस्वी, देवता, ऋषि, मुनि, दैत्य, पहाड़, सरिता, सागर, बन इत्यादि, जिनके नाम हैं उनके रूप हैं। जितने शब्द भाषण करने में अशुद्धि निकलते हैं उन सब के रूप भी काले बनकर निकलते हैं और जो शब्द भाषण करने में शुद्ध निकलते हैं उनके रूप भी सुंदर बन के निकलते है। यह बिषय अलेख है सतगुरु की कृपा बिना समझ में नहीं आ सकता हैं, नाम में रूप हैं, रूप में नाम हैं, नाम में प्रकाश है। प्रकाश में नाम है, रूप में प्रकाश है, प्रकाश में रूप है। सर्गुण में निर्गुण है, निर्गुण में सर्गुण है। हरि नाम स्मरण से ही कुछ समझ सकते हो जब कोइ सतगुरु मार्ग बतला देवैं नहीं तो बड़ा दुस्तर है। जो कुछ है सब ब्रह्म ही है।