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१५१ ॥ श्री ग़फूर जी ॥


गजल:-

कहता ग़फूर तन से होती धुनी है प्यारी।

मुरशिद बिना न जानो है हर जगह से जारी।

मुरशिद से जान करके खोजो सुघर मुरारी।

भीतर व बाहर देखौ जोड़ी युगुल निहारी।

मुरली अधर धरे हैं नुपुर पगन में धारी।५।

कानों में कुण्डल सोहैं शिर पर मुकुट सँवारी।

भूषन बसन कि बरनन करनें मे जीभ हारी।

अद्भुद अनूप जोड़ी पर तन मन धन हम वारी।८।