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१४० ॥ श्री अश्वत्थामा जी ॥


चौपाई:-

शंकर की पूजन हम कीन्हा। ह्वै प्रसन्न मो को बर दीन्हा।

कह्यो कि अजर अमर तुम रहहू। पूजन करो नित्य सुख लहहू।

खेड़ेश्वर शंकर सुन्दर थल। पूजत हौं नित लै गंगा जल।

बजैं रात्रि में जस दुइ भाई। मज्जन हित गंगा उठि जाई।

करि अस्नान लौटि चट आई। तन मन ते पूजौं हर्षाई।५।


दोहा:-

अश्वत्थामा कहत हैं शिव में प्रेम हमार।

एक तार लागा रहै रिधि सिधि फिरै पंछार॥