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१३९ ॥ श्री इन्दल जी ॥

दोहा:-

आल्हा तात लै आय के दीन्ह सजीवन जान।

देवी ने दीन्ह्यौ उन्है मानो बचन प्रमान।१।

आधी पायो आपने आधी मो को दीन।

दोनों जन हम अमर हैं सुन्दर रूप नवीन।२।

सोरठा:-

इन्दल कहैं सुनाय पिता संग हम रहत हैं।

देवी पूजन जांय नित प्रति दर्शन करत हैं।३।

 

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