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१११ ॥ श्री शची जी ॥


पद:-

ब्रह्मा भजत बिष्णु भजत शम्भु भजत जा को नाम।

शेष भजत लोमश भजत काक भजत अष्ट याम।

नारद भजत शारद भजत गणपति भजत श्री शुक अराम।

सब सुर भजत सब मुनि भजत सब ऋषि भजत नित्य ही काम।

सब में बसत सब को लखत सब की सुनत वह राम श्याम।५।

पहले कसत पीछे मिलत सब की सहत सो हो अकाम।

धुनि को सुनत हरि को लखत जियतै मुकुत सो भक्त आम।

सो नहि गिरत हरि पुर चलत प्रभु अस बनत ताको प्रणाम।८।


दोहा:-

गोबर्द्धन नख पर धरयौ, बृज की रक्षा कीन।

सात दिवस जल प्रलय सम, मेघन बर्षा कीन॥

सुर पति का मद चूर भा, आय चरन शिर दीन।

खड़े भये कर जोरि कै, तन मन से ह्वै दीन॥

अस्तुति कीन्ही श्याम की, क्षमा करो भगवान।

आप की माया अति कठिन, सुर मुनि नर भटकान॥

आप की कृपा जाहि पर, सो होवै भव पार।

नाहीं तो यह पटकि कै, छाती पर असवार॥

छिन छिन में भटकावती, खीचैं अपनी ओर।

किरपा निधि किरपा करो, नेक दृगन की कोर।५।

अस्तुति करि सुरपति गये, अपने पुर हर्षाय।

हरि गोबर्द्धन दीन धरि धन्य, धन्य यदुराय।७।


दोहा:-

बैठे कदम की छाँह, हरि सोय गये सुख पाय।

राधे जी पहुँचीं तहाँ, मुरली लीन चुराय॥

उठे श्याम मुरली नहीं, पहुँचे गृह में जाय।

रोवन लागै ह्वै खड़े, माता आईं धाय॥

गोदी में बैठारि कर, मातु रहीं चुपवाय।

मानैं नहि नेकौ बयन, रोवैं कहैं सुनाय॥

मुरली लीन चुराय कोइ, सोय गयऊँ मैं माय।

बड़ी दुःख मो को भयो, तन मन अति अकुलाय॥

कहैं यशोदा सुनो सुत, सोने कि देंव गढ़ाय।

बांस की बंशी जान दे, काहे तू बिलखाय।५।

कहैं कृष्ण माता सुनो, सोने की नहिं लेंव।

वही बाँशुरी लेंवगो चहैं तहां ते देव॥

उस वंशी का भेद मैं तोको देंव बताय।

शिवा कुंञ्ज में बांस एक प्रगट्यो हरि ने आय॥

ब्रह्मा तुरतै काटि कै सवा पोढ़ बिलगाय।

जाय के शिव को दीन दै तब हर रच्यो बनाय॥

सात छिद्र ता में करे राम नाम भरि दीन।

शिव ने फिर हरि को दियो, हरि फिरि मोको दीन॥

ना वह टूटै ना फटे ना वह मैली होय।

वह वंशी जो नहिं मिलै प्राण देऊँ मैं खोय।१०।


चौपाई:-

अन्तर ध्यान बांस ह्वै गयऊ। सुर मुनि ध्यान में देखत भयऊ।

सोने की चहै लाख मंगावो। मिलिहै वही तबै सुख पावों॥

सुनि हरि बचन मातु दुख आवा। घर घर में धावन पठवावा।

पता लगाय बांसुरी लावो। को लै गयो उसे समुझावो॥

पट भूषन हम धन बहु देहैं। जब तक जियैं सुयश नित गैहैं।

जो मम लाल कि वंशी देवै। जो मांगै सोई लै लेवै॥

धावन गृह गृह में बहु जावैं। पता न लगै लौटि फिरि आवैं।

रोवैं श्याम मातु की कनियां। नैनन ते जारी बहु पनियां॥

राधे सुन्यो बिकल बनवारी। मुरली लै कर तुरत सिधारी।

पहुँचि गईं मोहन ढिग प्यारी। दीन बांशुरी हंसे मुरारी।१५।

जारी........