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१०६ ॥ श्री अञ्जनी जी ॥

जारी........


दोहा:-

सात कमल षट चक्र औ, कुण्डलिनी लो जान।

फाटक तिरगुन का खुलै तिरबेनी अस्नान।१।

रेफ़ बिन्दु के दरश हों निकसै तेज महान।

ब्रह्मा बिष्णु महेश जी जपैं बीज यह मान।२।

अनहद बाजा बजै तहँ मधुर मधुर धुनि जान।

मुख से को बर्णन करै धुनि सुनि लागे कान।३।

सूरति लागी नाम में उत्रायण में मान।

तन छूटै तब जाय वह हरि पुर बैठि बिमान।४।