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७७ ॥ श्री घण्टा कर्ण जी॥

जारी........


चौपाई:-

ऐसी लीला कीन्ह कन्हाई। आये सबै देर नहिं लाई।१।

सब को तन छोड़ाय हरि दीन्हा। दुख नहिं व्यापेउ अचरज कीन्हा।२।


दोहा:-

दिब्य शरीर भये तुरत बारह बर्ष के जान।

चारि भुजा अति गौर तन क्या मैं करूं बखान॥


चौपाई:-

भूषन बसन गरुड़ पहिरायो। नर नारिन के मन जो भायो।१।

बैठि सिंहासन पर सब जैसे। उड़े पारषद लै कर तैसे।२।


दोहा:-

इन्द्र पुरी ह्वै कर गये लक्ष्मी निधि के पास।

शोभा देखत ही बनै कोटिन भानु प्रकाश।१।

दर्शन करिके चले सब नारायण के पास।

करि दर्शन तब फिर चले नरनारायण पास।२।


चौपाई:-

वहां से दर्शन करिके भाई। पर नारायण पास में जाई॥


दोहा:-

उतरि सिंहासन ते सवै शिर चरनन धरि दीन।

आशिष दीन्हेव कृपा निधि तब फिर आसन दीन॥


चौपाई:-

कह्यौ बसौ यँह पर हर्षाई। बान्नवे कड़ोड़ वर्ष तक जाई।

तब फिर उत्तम कुल में जैहौ। करि निष्काम भजन गति पैहौ।

ऐसे अधम उधारन स्वामी। जे न भजैं ते निमक हरामी।

घण्टा कर्ण कहैं हर्षाई। राधे कृष्ण जपौ मन लाई।

भव बन्धन से छूटे कैसे। चुवै पाक फल वृक्ष ते जैसे।५।