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६० ॥ श्री भूधर दासजी ॥


कजरी:-

सन्मुख रहते मेरे भैरव काली तनय बीर बलवान।

काला बदन नैन दोउ लाले शिव के प्राण समान।

काले श्वान के ऊपर बैठे कमलासन से जान।

तन से प्रभा श्वेत रंग निकलै चका चौंध हो मान।

कांधे ब्याल जनेऊ धारे निरखि के काल लुकान।५।

सर्प पूँछ को मुख में दाबें कैसा सिख्यौ ज्ञान।

लोह जंजीर लंगोटा मारे करि के खूब कसान।

दहिने कर त्रिशूल लिये हैं वायें दण्ड को जान।

दहिने कर पीछे कर में है चक्र तेज चमकान।

पीछे वायें कर के कर में लियो कपाल को मान।१०।

हर दम राम नाम को सुमिरैं अजपा जाप से जान।

राम सिया सन्मुख में रहते दिब्य रूप ते मान।

रिद्धि सिद्धि औ पुत्र देत हैं मुक्ति भक्ति को दान।

तन मन प्रेम से सुमिरन कीजै त्यागि मान अपमान।

कड़ू तैल सिन्दूर को चन्दन भाल बिराजै मान।१५।

गुड़ औ भंग क शरबत दीजै भोग मुनक्का पान।

लौंग कपूर की धूप को दीजै लेंय वासना मान।

प्रेम प्रीति से वश हो जावैं ज्यों बालक अज्ञान।

सबै पदारथ देंय कृपा करि जियत करैं कल्यान।

भूधर दास कहैं सुन लीजै ऐसे कृपा निधान।२०।