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२७ ॥ श्री श्यामा जी ॥


दोहा:-

कार्य्य सुफ़ल सब ह्वै गयो, तब आयन महाराज।

नित प्रति दर्शन देत हैं, श्री राधे ब्रजराज।१।


राग अध्दा:-

बजै दोउ भाइन पग पैजनियां।

श्याम गौर सुन्दर छवि सागर पहिने कटि करधनियां।

मोर मुकुट शिर कानन कुण्डल नाक में नाशामनियां।

खेलत नन्द के आंगन माहीं बहु बालक औ धनियां।

देखत रूप चराचर मोहैं दोउ कुँवरन छवि जनियां।५।

सुर मुनि नित दर्शन को आवैं तन मन प्रेम में सनियां।

दौरत हंसत घुमत दै तारी बोलत मृदुल बचनियां।

लीला अगम शेष मुख थकि गये जिनके सहस रसनियां।

रूठत मचलि जात भुइँ लोटत लेत यशोमति कनियां।

धन्य धन्य ब्रज बासी हैं सब धन्य नन्द नंदरनियां।१०।

रोम रोम से नाम खुलो है डोलत नहिं अब बेनियां।

हरदम झांकी नैनन सन्मुख भयो सुफ़ल तन बनियां।

पांचौ चोर तीनि गुण माया मन मरि ह्वै गयो पनियां।

भीतर बाहर एकै दरशै है यह अकथ कहनियां।

सतगुरु बिन कोइ जानि न पावै पढ़ि सुनि करत बखनियां।

श्यामा कहैं दीन ह्वै जावै लादै नाम लदनियां।१६।


दोहा:-

सतगुरु आप की कृपा अब मो पर ह्वै गई पूर।

नाम रूप परकाश लय, है पासै नहिं दूर॥


गज़ल:-

सब में व्यापक हैं वह चित चोर कहाने वाले।

सन्मुख रहते हैं सदा मुरली बजाने वाले।

रूप छवि कौन कहै वह तो हैं उपमा उपमेंय।

आप ही आप हैं आपै को बनाने वाले।

जैसा चहते हैं वैस रूप बना लेते हैं।५।

यही मुश्किल है बड़ी पार को पाने वाले।

स्वामी सेवक के भाव से मिला आनन्द हमें।

दुःख के बन्धन को मेरे तोड़ि बहाने वाले।

साथ चोरों क छोड़ि ढूँढ़ा तभी हमको मिले।

देखा तब आप ही में आप समाने वाले।१०।

बिना सतगुरु के हरि से मिलना ज़रा मुश्किल है।

पता उन्हीं से मिलै भेद बताने वाले।

श्यामा कहेती हैं बिना चाभी खुलै कैसे ताला।

मानुष तन पाय हाय मुफ़त गँवाने वाले।१४।


राग अद्धा:-

दशरथ के लला चित लीन्हों चुराय।

रूप अनूप कि उपमा को कहै देखत ही बनि आय।

बिखुरे बाल चहूँ दिशि सोहैं झीगुंलि तन फहराय।

किलकैं उठैं चहूँ दिशि खेलैं मातन हिये हुलसाय।

कर से कर पकरैं सब हिलि मिलि खेलैं घुमनी पराय।५।

कूदैं हँसै सबै आँगन में तारी खूब बजाय।

पगन पौटिया बाजैं प्यारी कानन शब्द समाय।

सुर मुनि दरशन रोज़ करत तहँ मानुष रूप बनाय।

गुरू वशिष्ठ राजा जी दशरथ बैठे तहं हर्षाय।

बाल नवीन प्रवीन सबै हैं श्याम गौर रंग भाय।१०।

राम भरथ रंग श्याम सुहावन शान्ति रूप सुखदाय।

लखन शत्रुहन गौर रंग अति चंचलता अधिकाय।

खम्भन के चारौं दिशि घूमैं झांकैं हँसै ठठाय।

जारी........