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२६ ॥ श्री पाताञ्जलि जी ॥


दोहा:-

परमारथ पथ है सही, सूरति शब्द की जाप।

पाताञ्जलि तुमसे कहैं, निर्गुण सर्गुण छाप।१।

पाताञ्जलि सत्पुरुष से, मिलत मार्ग यह जान।

सुलभ रास्ता और कोइ, या से है नहिं मान।२।

अजपा जाप खुलै जबै, मुक्ति भक्ति मिलि जाय।

पाताञ्जलि जियते लखै, बरनत नहिं सेराय।३।

पाताञ्जलि गुरु बचन पर, जाहि होय विश्वास।

सत्य सत्य मानो बचन, सो पहुँचै हरि पास।४।