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२३ ॥ श्री मियां खुसरू जी ॥


गज़ल:-

श्याम की सूरति को देखा दिल मेरा ललचा रहा।

नाम का जिनके जहाँ में हर जगह यश छा रहा।

छिप के बैठे हो कहाँ पर आय के दरशन तो दो।

स्वांस रुक रुक चलती है मुख में कलेजा आ रहा।

अनुपम छटा देखे बिना तन हो रहा है अट पटा।५।

किस सोच में भूले हो क्या कुछ गांठ से जाता रहा।

लौ लगी सच्ची मेरी घट घट कि आप तो जानते।

सब मे व्यापक आप कहलाते वह बल जाता रहा।

आप के मैं रूप पर आशिक हुआ लीजै खबर।

पास ही में राखिये अब जग से क्या नाता रहा।१०।

दीन बन्धु दयाल हौ अब दीन की सुन लीजिये।

देर काहे कर रहे मम ख्याल क्या जाता रहा।

आइये जल्दी मनोहर अर्ज खुसरू की यही।

सामने ही प्राण निकलें मन में अभिलाषा रहा।२४।


दोहा:-

भाला बर्छी सांगि औ तीर घाव भरि जाय।

विरह वान जाके लगै, खुसरू सो मरि जाय॥