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२२ ॥ श्री गूदर दास जी ॥


लावनी:-

क्या श्याम गौर दोउ वसुदेव देवकी लाला।

भये जगत हेतु अवतरित दुःख सब टाला।

कानों में कुण्डल शिर पर मुकुट विशाला।

केशरि को माथे तिलक़ गले मणि माला।

पहिरे तन में हैं वसन रंग रंग आला।५।

कटि में फेटा कसि बांधि सखा संघ वाला।

जब रहस करत बृज चन्द सुनो अहेवाला।

लखि शेष होत मुख मौन सहस फन काला।

मन मगन अहैं सरकार संग सखि ग्वाला।

सुर मुनि बहु देखैं चकित थकित बेहाला।१०।

ताथेई ताथेई धुनि उठत करन पर ताला।

बाजा नाना विधि बजैं राग हों आला।

नूपुर छम छम छम बजैं नाच गति चाला।

मुरली की मधुरी तान बजावत लाला।

सुधि बुधि सब की जाय भूल होंय मतवाला।१५।

श्री राधे जी हैं संग ढंग नीराला।

धनि धनि बृज भूमी धन्य जहाँ गोपाला।

नित नये नये तहँ खेल करत नन्द लाला।

बसि देखत ही बनि परै कहै को हाला।

परदा अज्ञान का हटै मिटै जंजाला।२०।

जब सतगुरु शब्द को दीन हिये में शाला।

मिटि गई करम गति लिखी रही जो भाला।

ध्वनि उठत नाम की रोम रोम ते आला।

मरि गये हृदय में रहत पांच थे व्याला।

जग में हरि सुमिरन सार मिटै भव जाला।२५।

जब दीन होय तब द्रवैं हटै दुख टाला।

अगणित पापी तरि जांय गये सुख साला।

जा को कहते सतलोक अमरपुर आला।

तन मानुष का हरि दियो बड़े किरपाला।

करि भजन जतन से सन्मुख ह्वै जा लाला।३०।

तब हर दम रहि हौ मगन डरैं यम काला।

साका लोकौ परलोक में होवै लाला।

प्रभु सुमिरन जग में सार और जंजाला।

सब गूदर दास के वचन पै कीजैं ख्याला।३४।


दोहा:-

हरि से जे जन विमुख हैं, उनकी कटि गइ नाक।

नाक यथारथ भक्ति है, ता को समुझत खाक।१।

गर्भ कि बात बिसारि कै, भये काल मुख पाक।

गूदर हरि निशि दिन भजै, तब होवै बेवाक।२।