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२४६ ॥ श्री गोरख नाथ जी ॥


मन्त्र:-

ओं अघोर अघोर महा अघोर ओं सर्व भूतेश्वराय ।

ओं सर्व शक्त्यै ओं सर्व श्मशानाय ओं सर्व देवाय नमः॥

ओं अँ ओं रँ ओं वँ ओं हँ ओं शँ॥

पूर्व दिशा वाक् सिध्द, पश्चिम दिशा धन पुत्र, उत्तर यश,

दक्षिण मारन, अधो दृष्टि स्वर्ग, उर्ध्व दृष्टि उच्चाटन,

ईशान स्तम्भन्, नैऋत्य आकर्षन, वायव्य मोहन, आग्नेय वंशीकरण॥

मन स्थिर करके यदि १००० (सहस्त्र) माला

एक समय में जप किये जावें तो प्रत्येक सिध्दि प्राप्त हो॥