१९३ ॥ श्री वसुदेव जी ॥
चौपाई:-
सर्गुन निर्गुन एक न मानै। कथनी कथिकै चलै उतानै ॥१॥
बिना गुरु के भेद न पावै। जन्मै मरै बहुत दुख पावै ॥२॥
चौपाई:-
सर्गुन निर्गुन एक न मानै। कथनी कथिकै चलै उतानै ॥१॥
बिना गुरु के भेद न पावै। जन्मै मरै बहुत दुख पावै ॥२॥