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१७४ ॥ श्री अश्वनी कुमार जी ॥


सोरठा:-

धन्वन्तरि भे राम, आय जगत औषधि करी ।

फिर लुकमान भे राम, का मुख लै विनती करी ॥१॥

राम औषधी रूप हैं, राम वैद्य को रूप।

राम सजीवन रूप हैं, रामै सब को रूप ॥२॥