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१५७ ॥ श्री नन्दीगण जी ॥


चौपाई:-

राम नाम शंकर कछु जाना। जाको गावत वेद पुराना ॥१॥

स्वयं सिध्द जो वीज कहावै। आवा गमन को जौन मिटावै ॥२॥

नाम रकार बताओ भाई। जाकी महिमा सुर मुनि गाई ॥३॥

खुलै नाम तब जै जै कारा। रोम रोम ते उठै रकारा ॥४॥

दरशन लीला खेल हमेशा। हर शै में देखै जगदीशा ॥५॥

छोड़ि कपट ह्वै निर्मल जाओ। तब यह भेद गुरू से पाओ ॥६॥


दोहा:-

बिना वीज के जपे से मिलै न पद निर्वान ।

नन्दीगन यह कहत हैं बचन लेहु मम मान ॥१॥