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१५६ ॥ श्री सुमेरु गिरि जी ॥


सोरठा:-

कुञ्जी गुरू के हाथ ताला कहो कैसे खुलै ।

चरनन पर धरि माथ दीन भाव ह्वै कर मिलै ॥१॥

ताली गुरू दै दीन तब ताला काहे न खुलै ।

सत्य वचन कहि दीन अमर लोक को सो चलै ॥२॥