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१४७ ॥ श्री संपाती जी ॥


चौपाई:-

नाम प्रताप अहै अति भारी। हर शै में फूली फुलवारी ॥१॥

बावन रूप जबै प्रभु धारी। बाढ़ि लगै आकाश मँझारी ॥२॥

तब मैं नाम सुमिरि मन लीन्हा। सात बार पैकरमा कीन्हा ॥३॥

तब प्रभु हँसि कै आशिष दीन्हा। बूढ़ भयो अब तन बलहीना ॥४॥

नाम हमार चित्त में लाई। तुम स्थिर ह्वै बैठो जाई ॥५॥

जब तुमरी आयू नगचाई। तब विमान हम देव पठाई ॥६॥

बैठि विमान मेरे ढिग ऐहौ। तब हमरो नित दरसन पैहौ ॥७॥


दोहा:-

अस प्रभु दीन दयाल हैं नीचन पर अति प्रीति ।

का मुख लै विनती करौं युगन युगन यह रीति ॥१॥