साईट में खोजें

१४४ ॥ श्री जामवन्त जी ॥


चौपाई:-

राम से बड़ा नाम परतापू। करत जाहि सुर नर मुनि जापू ॥१॥

इन्द्रजीत को गहि पद फेंका। गयो तुरत भइ देर न नेका ॥२॥

सत्ताईस दिन भई लड़ाई। द्वापर युग में हरि से भाई ॥३॥

नाम प्रताप वरनि नहिं जाई। जिनका नाम वही यदुराई ॥४॥

तन मन हार तनक नहिं आई। हँसि मुस्टिक प्रभु दीन चलाई ॥५॥

गिर्यो धरनि पर तब मैं जाना। प्रगट भये श्री कृपानिधाना ॥६॥

को जग सूर जो मोहिं हरावै। त्रेता युग की बात मिटावै ॥७॥


दोहा:-

चरन शरन तब मैं पर्यौ हँसि प्रभु लीन उठाय ।

धन्य धन्य करुणा अयन कौन सकै गुन गाय ॥१॥