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११४ ॥ श्री श्री चन्द्र जी ॥


दोहा:-

अकाल मूरति रेफ है सो सब में भरपूर ।

अति नेरे औ दूरि है कहौ बजाय के तूर ॥१॥

सतगुरु के परताप से जानि लेय सो सूर ।

नाहीं तो भटकत फिरै सज्जन भाखैं कूर ॥२॥