६७ ॥ श्री महात्मा नित्यानन्द जी ॥
जारी........
तुलसी चौरा कहत जेहि है पुरान अस्थान ।
सबै जगह यह विदित है मैं क्या करूँ वखान ॥७॥
श्री यमुना जी के निकट राजा पुर शुभ ग्राम ।
विप्र वंश में अवतरे धन्य धन्य वह धाम ॥८॥
पवन तनय के शाप से वाल्मीकि जी आय ।
हुलसी माता के भये तुलसीदास कहाय ॥९॥
सह्यो दुःख जो बालपन सो क्या करूँ बखान ।
जगत हेतु अवतरित भे सो सुनि लेहु सुजान ॥१०॥
श्री गिरिजा पति ने कह्यौ हे नरहरियानन्द ।
जाय के तुम रक्षा करो ह्वै है अति आनन्द ॥११॥
वचन सुनत तुरतै गये बालक लीन्ह बुलाय ।
शोभा देखत छकित भे मुख से कही न जाय ॥१२॥
धीरे धीरे सब उन्हैं दीन्हों शास्त्र पढ़ाय ।
बाकी कछु राख्यो नहीं तन मन ते हर्षाय ॥१३॥
राम नाम के भजन की दीन्हेव बिधी वताय ।
श्री गुरु परताप की महिमा कही न जाय ॥१४॥
शान्ति शील सन्तोष अरु प्रेम दीनता आय ।
अब कछु बाकी न रह्यौ अनुभव दीन जगाय ॥१५॥
नाना विघ्न भयो उन्हें लग्यो न एकौ रंग ।
गिरिजा पति रक्षा करैं पवन तनय हैं संग ॥१६॥
श्री गुरु महराज जी चले गये साकेत ।
चारिउ दिशि ते घूमि तब आये अवध निकेत ॥१७॥
यही भूमि पै आय कै बैठे मुनि महाराज ।
कछु मन में इच्छा भई राम चरित सुखसाज ॥१८॥
श्री किरपानिधि जगत पति भक्त कि राखैं टेक ।
आये सब देवन सहित देर भई नहिं नेक ॥१९॥
उर प्रेरक तो आप ही करत आप ही खेल ।
आप आपको जानते आपै आप अकेल ॥२०॥
और कोई दूजा नहीं जानि लेय जो कोय ।
गुरु किरपा ते जगत में आवागमन न होय ॥२१॥
श्री विष्णु भगवान जी शिर पर फेरयो हाथ ।
सबै देव आशिष दियो तन मन भयो सनाथ ॥२२॥
श्री शारद श्री सरस्वती जिह्वा आसन लीन ।
विजय होय अब देर नहिं चरित विचित्र महीन ॥२३॥
दहिने श्री शंकर अहैं बायें श्री हनुमान ।
सनमुख श्री गणेश जी पीछे शेषहिं जान ॥२४॥
गोस्वामी जी कलम गहि सब को कीन प्रणाम ।
कृपा होय अब दीन पर पूरण हो यह काम ॥२५॥
आठ बजे से चारि तक सातों काण्ड तयार ।
सबै देव मुनि कीन तहँ बानी जय जय कार ॥२६॥
शुभ चरित्र अति जगत में याते बड़ो प्रचार ।
पाठ करै जो प्रेम से सो होवै भवपार ॥२७॥
राम रूप मानस अहै जानि लेय जो कोय ।
श्री गुरु परताप ते नित प्रति दर्शन होय ॥२८॥
अर्थ कौन या को करै है अति अगम अपार ।
राम नाम को जानि कै सो पावै सुखसार ॥२९॥
जौन चरित बाँचै सुनै नैनन सन्मुख होय ।
अर्थ यथारथ है यही जानि लेव तुम सोय ॥३०॥
चारि वेद षट शास्त्र हैं औ दश आठ पुरान ।
सबै संहिता उपनिषद गीता ज्ञान निधान ॥३१॥
योग वशिष्ट व भागवत महाभार्त को ज्ञान ।
जारी........