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६७ ॥ श्री महात्मा नित्यानन्द जी ॥

जारी........

परभाती करवाइये फिर कुल्ला करवाय ॥२२॥

तब फिर चन्दन रगरि के घोरै जल में लाय ।

झारी में भरि के धरै फूल सुगन्ध मंगाय ॥२३॥

ताम्र पात्र में लाइके ठाकुर देय बिठाय ।

झारी से जल छोड़िये राम मंत्र पढ़ु भाय ॥२४॥

धीरे धीरे प्रभू को दीजै फिर नहवाय ।

तब साफी से पोछि कै सिंहासन बैठाय ॥२५॥

चरनन का तब भाव करि तुलसी धरै अगार ।

सिर पर तुलसी ना धरै मानै वचन हमार ॥२६॥

फूलन का है भाव यह चारो दिशि धरि देय ।

नाही तो प्रभु कृपानिधि सांस कवन विधि लेंय ॥२७॥

धूप सुगन्धित करै फिर गो घृत रूई मंगाय ।

बाती शुद्ध बनाइके तामे देइ भिजाय ॥२८॥

दीप करै नैवेद्य लै धरै प्रभू के पास ।

तुलसी छोड़ै थार में देखै ब्रह्म विलास ॥२९॥

आँख बन्द करि ध्यान करि देखै प्रभु जी खात ।

शोभा मुख से क्या कहैं संग लिये सब भ्रात ॥३०॥

तब झारी में जल भरहु मुख से सबहिं पिआव ।

जब चारौं भ्राता पियैं तब आचमन कराव ॥३१॥

साफी कर में लीजिये दीजै सबै दिखाय ।

तब आरती कपूर की कीजै मन हरषाय ॥३२॥

अब चारों सरकार को देव इलायची पान ।

विनती करिये प्रेम से जीवन धन के प्रान ॥३३॥

परिकरमा करि लेहु अब होवैं अन्तरध्यान ।

भक्तन के वश रहत हैं हर दम कृपानिधान ॥३४॥

करो दंडवत चरन की बार बार वर माँगि ।

तुमरे चरनन कृपा निधि रहै सुरति नित लागि ॥३५॥

हरि सेवा की विधि यही तुम्है दीन बतलाय ।

जस करिहौ तस पाइहौ आगे परी दिखाय ॥३६॥

चरणोदक परसाद फिर गुरु ढिग लैकर जाव ।

प्रेम सहित विधि पूर्वक गुरु को भोग लगाव ॥३७॥

पाय भोग जब शान्त ह्वै बैठैं गुरु महाराज ।

तब आरती उतारिये बनि जावैं सब काज ॥३८॥


चौपाई:-

पांचों पैकरमा करु भाई। जासे मन निर्मल ह्वै जाई ॥१॥

करो दंडवत गुरु की धाई। बार बार तन मन हर्षाई ॥२॥

तब चरणोदक जूठनि पावो। जन्म जन्म के पाप नशावो ॥३॥

हरि गुरु सेवा भेद न मानो। बचन मोर यह सत्यहिं जानो ॥४॥

जो यहि विधि सेवा तुम करिहौ। जग में नहीं बहुरि तन धरिहौ ॥५॥

नाना चरित देखिहौ भाई। कहन सुनन में जो नहिं आई ॥६॥


दोहा:-

सुलभ रास्ता है बड़ा ह्वै जावै जो दीन ।

तो तनिकौ मुश्किल नहीं भाखैं परम प्रवीन ॥१॥

सतगुरु के परताप से सब कारज ह्वै जाय ।

जैसे चाम की स्वाँस से लोह कठिन गलिजाय ॥२॥

अब कछु बाकी ना रह्यो समुझायो मैं तोहिं ।

सूरति लागी शब्द में हर दम दर्शन होहिं ॥३॥

श्री अयोध्या पुरी जी तुम्हैं नवाऊँ माथ ।

मैं बालक अज्ञान हूँ शिर पर धरिये हाथ ॥४॥

आप की गोद में राम जी आय लीन अवतार ।

धनि धनि माता धन्य हौ बिनवौं बारम्बार ॥५॥

खेलत घूमत रहत हैं नित चारों सरकार ।

बाल रूप शोभा अमित लीला अपरम्पार ॥६॥

जारी........