साईट में खोजें

३०८ ॥ श्री ललिता जी ॥


होली:-

होली खेलत अवध बिहारी मगन।

भरत लखन रिपुदमन सखा संग उठत कोलाहल बारी मगन। होली०।

आपस में सबके सब मारत हंसि हंसि के पिचकारी मगन। होली०।

मात पिता गुरु निरखत बैठे प्रेम में तन मन वारी मगन। होली०।४।

कांधा सोती अबीर औ कुमकुम भरि झोरी लियो डारी मगन। होली०।

सबके सब मुट्ठी भरि झोंकत तन छबि सोहत न्यारी मगन। होली०।

संग में साज बजत बहु बिधि के राग ताल धुनि न्यारी मगन। होली०।

अर्क सुगंधित केवरा गुलाब क केसरि मृगमद डारी मगन। होली०।८।

इतर फुलेल अनेक किसिम के मलयागिरि रग रारी मगन। होली०।

नर नारिन गृह निज निज साजे निरखत ठाढ़े अटारी मगन। होली०।

संग समाज कृपानिधि आगे चलि भये सब सुखकारी मगन। होली०।

हाट बाट द्वारेन और सब गृह राजत मुनि मन हारी मगन। होली०।१२।

भाभी निरखि प्रभु पर रंग छिरकैं फेरि अबीर को डारी मगन। होली०।

कुमकुम ऊपर ते भुरकावैं शान्ति खड़े धनुधारी मगन। होली०।

आरति साजि के फेरि उतारैं चरन कमल शिर धारी मगन। होली०।

सुर मुनि नभ ते फूल गरावें बोलत जै जैकारी मगन। होली०।१६।

पगन कि आहट खलभल खलभल रंग बहत जैसे वारी मगन।

श्री सरजू जी की छबि सुन्दर सोहत मंगल कारी मगन।

मानहुं ब्याहि के आजहिं आईं ओढ़े सुरख रंग सारी मगन।

सतगुरु करि निरखै यह लीला तब हो जीव सुखारी मगन।२०।

ध्यान समाधि नाम धुनि पावै छाय जाय उजियारी मगन।

सन्मुख रामसिया की झाँकी हरदम होय न न्यारी मगन।

सुर मुनि नित सब दर्शन देवैं कोमल बचन उचारी मगन।

ललिता कहैं तन मन प्रेम लगै तब होय जियति भव पारी मगन।२४।


दोहा:-

राम कृष्ण औ बिष्णु को एक भाव जो मान।

ललिता कह जियतै मुकुत सो है भक्त महान।१।

आदि मध्य औ अंत नहिं धन्य धन्य भगवन्त।

निर्गुण से सर्गुण बनत सुर मुनि वेद भनन्त।२।

सब में सब से अलग है जानै जानन हार।

ललिता कह तव चरन को बार बार बलिहार।३।

भक्तन हित अवतार लै हरत धरनि को भार।

ललिता कह प्रभु चरित तब गावै ते भव पार।४॥