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७४२ ॥ श्री मोती माल खां ॥

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कटु मृदुल शब्द सहेना। औ दीनता से रहेना।२०।

कहता नेवाजी कहेना। तब हो कभी न बहेना।२२।

 

सोरठा:-

निर्भय औ निर्बैर, कहैं नेवाजी भक्त हों।

तिनकी समझौ खैर, जियतै में वै मुक्त हों।१।

रामानन्द क शिष्य हूँ, कहैं नेवाजी मान।

जिनकी कृपा कटाक्ष ते, तत्व ज्ञान भा जान।२।

 

७४६ ॥ श्री रसूला जी ।

 

पद:-

सुमिरौ सब बीज रकार रकार भाई बहिनो,

सुमिरौ भाई बहिनो।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो जियतै हो भव पार

भव पार भाई बहिनो।

रग रोवन ते नाम कि धुनि हो राति दिवस एक तार

एकतार भाई बहिनो।

ध्यान समाधि नूर को पावो सूरति शब्द सम्हार

सम्हार भाई बहिनो।

बहु प्रकार के अनहद सुनिये तन मन हो मतवार

मतवार भाई बहिनो।५।

 

सुर मुनि सब के दरशन होवैं बोलैं जै जै कार

जय जय कार भाई बहिनो।

कुण्डलिनी षट चक्र लखौ औ सातौं कमल बहार

बहार भाई बहिनो।

कहैं रसूला हर दम सन्मुख सिया सहित सरकार

सरकार भाई बहिनो।८।

 

दोहा:-

सतगुरु रामानन्द की चेली मैं हूँ जान।

कहै रसूला सत्य यह मानो बचन प्रमान।१।

 

७४७ ॥ श्री नसीबा जी ।

 

पद:-

भाई बहिनो तुम्है कुछ फिकिर ही नहीं।

बिना हरि के भजे कहीं गुजर ही नहीं।

यम पीटै अहर्निश दरद ही नहीं।

किमि मानै हैं वह तो बशर ही नहीं।

बिना सतगुरु के पाओ डगर ही नहीं।५।

 

बिधि जानोगे तब तो कसर ही नहीं।

जपैं सुर मुनि जिन्हैं कुछ उजुर ही नही।

कह्यौ काहे गरभ में खबर ही नहीं।

यहां पर तुम्हारा यह घर ही नहीं।

चित चेतो वहां की खबर ही नहीं।१०।

 

बिना सुमिरन के कोई सुधर ही नहीं।

कहैं सांची नसीबा सबर ही नहीं।१२।

 

दोहा:-

स्वामी रामानन्द जी मोहिं लीन अपनाय।

भर्म क भांड़ा फूटिगा राधा कृष्ण दिखाय।१।

नाम रूप परकाश लय धुनि पायों एकतार।

अनहद बाजा घट बजै को करि सकै शुमार।२।

सबै देव मुनि दर्श दें नाना चरित सुनाय।

कुण्डलिनी षट चक्र औ सातौं कमल देखाय।३।

बीज रकार कि जाप यह अगम अथाह अपार।

कहैं नसीबा जाइये गुरु चरनन बलिहार।४।

 

७४८ ॥ श्री मुरव्वत शाह जी ।

 

पद:-

मन मोहिं काहै नाच नचावै।१

नाना विधि की लिहे बासना तिन संग मोहिं भरमावै।

काम क्रोध मद मोह लोभ औ माया द्वैत लगावै।

जारी........