साईट में खोजें

७४२ ॥ श्री मोती माल खां ॥

जारी........

उस खेल को मुझे कभी दिखला दिया करो।

ग्वालों के साथ बन बन में गौवें चराते थे।१०।

 

वह दौड़ कूद मुझ को भी बतला दिया करो।

काँधे पै काली कामरि माखन औ रोटी लै।

कर दाहिने में लकुटि लै गोहरा लिया करो।

बकरीदि कहता भगवन तव खेल हैं अनन्त।

में आपके सहारे हूँ मेरा भला करो।१५।

 

७५१ ॥ श्री गौहर खां जी ।

 

पद:-

मेरे तन मन की ताप मिटा दे मोहन।

ज़रा सीने से सीना लगा दे मोहन।

हंसि नैनों की सैन चला दे मोहन।

फिरि मुरली अधर धर बजादे मोहन।

धुनि नूपुर की छम छम सुना दे मोहन।५।

 

सखा सखियों संग रास दिखा दे मोहन।

ध्यान लय और परकाश मिला दे मोहन।

धुनी हर दम रग रोंवन करा दे मोहन।

कमल चक्कर कुण्डलिनी लखा दे मोहन।

सब सुर मुनि से मेल करा दे मोहन।१०।

 

सब दुनियां कि बातैं भुला दे मोहन।

उन सब को पकड़ के सुला दे मोहन।

प्रेम प्याले को छक कर पिला दे मोहन।

मतवाला दया कर बना दे मोहन।

युगुल झांकी मम सन्मुख में छा दे मोहन।

गौहर मोहिं निजपुर पठा दे मोहन।१६।

 

७५२ ॥ श्री वन्दा दीन जी ।

 

पद:-

अगम अथाह अपार अकथ सिय राम तुम्हारी सब लीला।

तुम चाहो जिसे मिलि जाव उसे पर एक लगा देते हीला।

तुम चाहो जिसे कलपाओ उसे पर एक बहाना क्या ढीला।

उत्पति पालन परलय औ लय कर दो पल में गुण निधि शीला।

तुम सब में हौ सब से न्यारे क्या गौर पीत तन है नीला।५।

 

सब सुर मुनि आप को ध्याय रहे बसु याम प्रेम तन मन गीला।

सब के हौ प्राण के प्राण बने छबि निरखि के सब ने भै ढीला।

बृन्दा दीन कहैं बैकुण्ठ मुझे दै दीन कृपानिधि सुख मीला।८।

 

७५३ ॥ श्री ललन प्रिया जी ।

 

चौपाई:-

भजु राम सिया के चरन कमल। सब सुर मुनि ध्यावत करत अमल।१।

कोई नहिं जिनसे और सबल। कहैं ललन प्रिया जपि होहु बिमल।२।

 

दोहा:-

दीन बास बैकुण्ठ मोहिं, ललन प्रिया कहैं राम।

देखत ही बनि परत है सुन्दर शोभा धाम।१।

 

७५४ ॥ श्री मुन्शी नवल किशोर जी ।

 

शेर:-

करै काम ज़ाहिर में दुनियां के यार।

मगर ख्याल बातिन से परवर दिगार।१।

रहै पाक बेबाक सब से मिला।

वही जाय कर भिश्त में फिरि खिला।२।

जैसे कि दाल में नमक को छोड़ देते हैं।

वैसे जे रोजगार में पैसे को लेते हैं।३।

होती बड़ी बरक्कत कहता नवल किशोर।

खुश हाल रहते हैं सदा भाता न उनको शोर।४।

 

७५५ ॥ श्री शफालू जी ।

जारी........