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७१० ॥ श्री फ़कीर शाह जी ॥

पद:-

फ़कीरों की फ़कीरी में विघिन करना बड़ा कर्रा।

सुनी कहते नहीं देखा गये वे नर्क के ढर्रा।

रास्ते में दूत उनको पकड़ि कर फेरैं जिमि भर्रा।

मार लोहे के डन्डों से तूरि पांजड़ औ दें नर्रा।

कहैं पाजी अधर्मी रे जरा मुझ से तो कुछ टर्रा।५।

 

बोल मुख से नहीं फूटै गले में लागिहै थर्रा।

करैं इजलास पर हाजिर करम का दें सुना खर्रा।

हुकुम हो बांधि के टांगो चलें बन्दूक के छर्रा।८।