६९९ ॥ श्री सरदार खां जी ॥
(बनारस)
(स्वामी रामानन्द जी के शिष्य)
पद:-
सदा श्री स्वामी रामानन्द की जै जै जै मनाता जा।
कृपा जिनकी से निर्मल हो बिमल प्रभु चरित गाता जा।
जानि जप भेद को भाई कदम आगे बढ़ाता जा।
दीनता शांति से मिलकर कोष अपना बचाता जा।
त्यागि रज तम के भोजन को सतो गुण का ही खाता जा।५।
दया औ धर्म जीवन भर करा कर औ कराता जा।
बसन मतलब भरे को रख मिलै ज़्यादा लुटाता जा।
उनमुनी जोग मुद्रा से बैठि आसन जमाता जा।
महूरत ब्रह्म में उठ कर ख्याल अजपा पै लाता जा।
इसी से सिद्धि साधन हो साधकों को सुनाता जा।१०।
होय निर्छल जो अधिकारी उसे रस्ता बताता जा।
एकता होय तन मन की हर जगह सुख उड़ाता जा।
ध्यान धुनि नूर लय होवै लिखा बिधि का मिटाता जा।
देव मुनि आय दें दरशन सबों को सर नवाता जा।
बजै अनहद सुघर घट में अमी पी मुसकिराता जा।१५।
जगै नागिन चलैं चक्कर कमल सातौं खिलाता जा।
दमन इन्द्रिन को करि जियतै समय अपना बिताता जा।
कार्य्य शुभ कर सिताबी से नींद आलस हटाता जा।
हर समय राम सीता की छटा सन्मुख में छाता जा।
कहैं सरदार खां तन तजि सिंहासन चढ़ि के जाता जा।२०।