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६९८ ॥ श्री बूढ़ी माई जी ॥

(सिरसागढ़)

पद:-

जिसे है चाह भक्ती की नाम पर मन लगाता जा।

जानि मारग को सतगुरु से कदम आगे बढ़ाता जा।

देव मुनि आय दें दर्शन बिहंसि उर में भिड़ाता जा।

बजै अनहद सुघर घट में अमी पी मुसकिराता जा।

जगै नागिन चलैं चक्कर कमल सातों खिलाता जा।५।

 

ध्यान धुनि नूर लय होवै लिखा बिधि का मिटाता जा।

हर समय राम सीता की छटा सन्मुख में छाता जा।

अन्त निज धाम कह बूढ़ी सिंहासन चढ़ि के जाता जा।८।

 

शेर:-

सुनाता जा बताता जा पढ़ाता जा भगत जन को।

समय आने पर कह बूढ़ी सुफ़ल कर देय तन मन को॥

गवाता जा लिखाता जा हिलाता जा भगत जन को।

समय आने पै कह बूढ़ी सुफ़ल कर देय तन मन को॥

दिखाता जा बुलाता जा धिराता जा भगत जन को।

समय आने पै कह बूढ़ी सुफ़ल कर देय तन मन को॥

सिखाता जा बिठाता जा कसाता जा भगत जन को।

समय आने पै कह बूढ़ी सुफ़ल कर देय तन मन को।४।