६८९ ॥ श्री फेरी शाह जी ॥
(मुकाम पाटानाला, लखनऊ)
पद:-
पढ़ना लिखना सुनना न फलै जब अमल नहीं उन बातौं पर।
जब तन छूटी तब जान पड़ी पिसि जैहो जमन के जातौं पर।
तब कौन सहायक हो वहं पर फूले हो झूठे नातौं पर।
मुरशिद करि के हरि नाम जपौ आवौ अब घर की घातौं पर।
भोजन हो हलका जल थोड़ा चरबी न चढ़ै तब आंतौं पर।५।
धुनि ध्यान प्रकाश समाधी हो सुर मुनि लिपटैं हंसि गातौं पर।
कौसर चाखौ घट साज सुनो प्रिय हरि सन्मुख दिन रातौं पर।
नागिन जागै षट चक्र चलै क्या कमल महक लो सातौं पर।
दूरहि ते माया मृत्यु काल कर जोरि गिरैं चट लातौं पर।
फेरी कह जियतै भव तरिये यह अर्ज मेरी पितु मातों पर।१०।
पद:-
बनो मंसूर औ ईसा करौ मुरशिद न हो देरी।
मिलैं सुर मुनि लिपटि कर के करैं खिदमत सभी तेरी।
जगै नागिन नचैं चक्कर कमल सातौं सकौ हेरी।
सुनो बाजा चखौ कौसर मृत्यु माया बने चेरी।
ध्यान धुनि नूर लै होवै रूप सन्मुख कहै फेरी।
अंत तन छोड़ि निज पुर लो कटै भव जाल की बेड़ी।६।