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६८७ ॥ श्री बाबा अपढ़ दास जी ॥

(मुकाम: पीर नगर जि. सीतापुर)

वार्तिक:-

कुमनई, कुवृक्ष के नीचे रहने वाला, कुपशु को खाने व पालने वाला, कुनाज को खाने वाला। कुमनई पासी को कहते हैं कुवृक्ष बबूल को कहते हैं; कुपशु सुअर को कहते हैं; कुनाज मेड़ुआ (मकरा) को कहते हैं।

 

पद:-

अवध धनुधारी बनो, शंकर धनुटारी बनो, सीता सुखकारी बनो,

सुर मुनि भय हारी बनो वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह॥

बृज को बिहारी बनो, बिष को अहारी बनो, द्रुपदी की सारी बनो,

सखिन में प्यारी बनो, वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह॥

बिसातिन लिलहारी बनो, नाउनि मनिहारी बनो, बैद्य बनवारी बनो,

वंशी गिरधारी बनो, वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह॥

शूकर भयकारी बनो, नर हरि खम्भ फारी बनो, कच्छ मच्छ भारी बनो,

बावन ब्रह्मचारी बनो वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह॥

गिरिजा त्रिपुरारी बनो, ब्रह्मा मुखचारी बनो, बिष्णु चक्रधारी बनो,

शेष महिबारी बनो, वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह।५।

 

मदन मुरारी बनो, दुष्टन संघारी बनो, पिता महतारी बनो,

गगन पहारी बनो, वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह॥

धर्म को प्रचारी बनो, कर्मन को ढारी बनो, छूरी कटारी बनो,

तोप तलवारी बनो, वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह॥

सतगुरु हितकारी बनो, शब्द रंकारी बनो, ध्यान उजियाली बनो,

चौबिस औतारी बनो, वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह॥

अनहद धुनि झारी बनो, अमृत पय धारी बनो, छटा छवि न्यारी बनो,

पाप क्षयकारी बनो, वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह॥

निशि हित शशि भारी बनो, दिन हित तमारी बनो, आपै कुलुफ़ तारी बनो

आपै सृष्टि सारी बनो, वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह।१०।

 

पद:-

मन तुम बड़े भवन व्यौपारी।१।

अस व्योपार करत निशि बासर जासे जीव दुखारी।

पाप ताप से निकसि सकै किमि जग के नर औ नारी।

सतगुरु करि सुमिरन विधि जानो बनि जाव ठीक पुजारी।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रोम रोम झनकारी।५।

 

अनहद सुनो पिओ घट अमृत सुर मुनि देंय स्वाहारी।

सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि हर दम सकौ निहारी।

अन्त त्याग तन निजपुर राजौ दोनों दिशि बलिहारी।८।