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६७ ॥ श्री महात्मा नित्यानन्द जी ॥

जारी........

योगानन्द मम नाम है सुनिये सांचे बैन ।

बिन सतगुरु की कृपा ते होय न तन मन चैन ॥८॥


छन्द:-

श्री राम कृष्ण औ विष्णु शक्तिन सहित हम निरखत रहैं ॥१॥

क्या अमित रूप अनूप सुखमा भवन कोउ कैसे कहैं ॥२॥

संग सुर व मुनि खेलैं हँसैं बोलैं मधुर बातैं कहैं ॥३॥

श्री राम नाम की धुनि सुनै अनहद बजैं अति सुख लहैं ॥४॥

मुक्ती औ भक्ती मिल गई, श्री गुरु कृपा ते हम कहैं ॥५॥

आवागमन नहिं होय अब, साकेत में स्थिर रहैं ॥६॥

यह चरित कछु जानै वही जो गुरु वचन तन मन गहै ॥७॥

योगानन्द होय आनन्द अति निर्वाण पद सोई लहै ॥८॥


पद:-

गुरु मारग हमैं सत बतायो जी ॥१॥

जियत में मुक्ति भक्ति पद मिलि गयो चरन कमल चित लायो जी ॥२॥

आसन की कोई विधि नाहीं जैसे तन मन भायो जी ॥३॥

शान्त चित चुप चाप बैठि के सूरति शब्द लगायो जी ॥४॥

किणीं किंकिंणी रूणी झुन झुनी सिंह धुनी सुनि पायो जी ॥५॥

चाचरी खेचरी भूचरी अगोचरी उनमुनी सुख पायो जी ॥६॥

खेचरी जीह से नाम उचारै भूचरी शब्द मिलायो जी ॥७॥

अगोचरी उलटि ब्रह्माण्ड को जावै चाचरी त्रिकुटि लखायो जी ॥८॥

उनमुनी नासिका एक होय जब जगमग जोति जगायो जी ॥९॥

यह मुद्रा पाचौं हैं सुनिये जिनके नाम बतायो जी ॥१०॥

पांच तत्व के पांच रंग जो सो सब हम लखि पायो जी ॥११॥

पृथवी तत्व का रंग है पीला जल का स्वेत कहायो जी ॥१२॥

अगिन तत्व का लाल रंग है वायु क हरा लखायो जी ॥१३॥

है अकाश का श्याम श्याम सब देखत मन ललचायो जी ॥१४॥

पांचों के हैं स्वाद पांच ही सोउ सब हम पायो जी ॥१५॥

पांचों की फिरि चाल पांच हैं देखन में मम आयो जी ॥१६॥

सातों कमलन के रंग जो हैं सो सब हम लखि पायो जी ॥१७॥

षट चक्कर के जौन रंग हैं सोऊ सब दर्शायो जी ॥१८॥

जौन देव जहँ वास करत हैं सब के दर्शन पायो जी ॥१९॥

कुण्डलिनी को जाग्रत कीन्हाँ जहाँ चहै तहाँ जावो जी ॥२०॥

मेटि करम गति दीन श्री गुरु जब यह मार्ग लखायो जी ॥२१॥

सूरति ते करि गगन में फेरा काल से हाथ जोरायो जी ॥२२॥

मीन पपील मार्ग के आगे विहँग मार्ग कहलायो जी ॥२३॥

यही मार्ग श्री गुरु किरपा ते हमरे मन में भायो जी॥२४॥

स्वामी जी से श्री कलयुग जी ने उपदेश को पायो जी ॥२५॥

तब प्रसन्न भयो अस्तुति करि साष्टांग परि जायो जी ॥२६॥

श्री कलिराज धन्य गुरु भाई जिन यह मार्ग खोलायो जी ॥२७॥

सतयुग का यह मार्ग रहा सो अब कलयुग में आयो जी ॥२८॥

प्राण अपान उदान समान व्यान मिलि अनहद सुधि पायो जी ॥२९॥

पौने का सब खेल है प्यारे पौने पौन सुहायो जी ॥३०॥

पौन नाम औ पौन रूप है पौने लीला गायो जी ॥३१॥

पौने पौन पौन है पौने पौने धाम बनायो जी ॥३२॥

पौने आप आप हैं पौनै पौन पौन गुन गायो जी ॥३३॥

आप पुरुष औ आपै नारी आप में आप मिलायो जी ॥३४ ॥

आपै आप आप हैं आपै आपै आप को जायो जी ॥३५॥

आपै आप को सेंय आप ही आपै गोद खेलायो जी ॥३६॥

आपै रोवैं आपै गावैं आपै फिर चुपकायो जी ॥३७॥

आप आप को देखि आप ही आपै हँसि मुसुकायो जी ॥३८॥

आप छोट फिर आप बड़े ह्वै आपै वृध्द कहायो जी ॥३९॥

आपै पिता पुत्र हैं आपै आपै मातु कहायो जी ॥४०॥

आपै भाई बहन आप हैं आपै सहज सोहायो जी ॥४१॥

आप गुरु औ आपै चेला आपै मन्त्र बतायो जी ॥४२॥

जारी........