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६० ॥ श्री कलियुग महाराज जी ॥


दोहा:-

धन्य धन्य तुम धन्य हो धन्य धन्य तुम धन्य ।

सब देवन के दरस भे तुम पर हम परसन्न ॥१॥

तुम हमार गुरु भाय हो हम तुमार गुरु भाय ।

ताते विनती करत हौं बार बार सिर नाय ॥२॥

गुरु सेवा का फल यही आँखिन देखो भ्रात ।

आवागमन न होय अब छूटा जग से नात ॥३॥

चहें तहाँ अब तुम रहौ राम कृष्ण हैं संग ।

अब तुम्हारि रक्षा करैं शिव समेत बजरंग ॥४॥