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५५६ ॥ श्री अड़ँग शाह जी ॥

पद:-

मुक्ति भुक्ति और भक्ति चहै सो हर हनुमान को ध्यावै जी।

राम नाम के बांटनहारे सुर मुनि सब बतलावैं जी।

बड़ी कृपा भक्तन पर राखत सतगुरु ढिग पहुँचावैं जी।

ध्यान धुनी परकाश दशा लय सुर मुनि दरश करावैं जी।

अमृत पिओ सुनो घट अनहद करम रेख कटवावैं जी।५।

 

राम सिया प्रिया श्याम रमा हरि आप सामने छावैं जी।

जब तक तन इस जग में डोलै संघै संघ सिधावैं जी।

अन्त समय साकेत धाम को यान चढ़ाय पठावैं जी।८।