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५२८ ॥ श्री नारायण शरण जी रसिक ॥

(श्री द्वारकापुरी)

पद:-

सांचा रसिक तवन श्रुति कहई।

सतगुरु करि सुमिरन विधि जानै मन अन्तै नहिं वहई।

लय प्रकाश ध्यान धुनि पावै सुर मुनि के पग गहई।

अनहद सुनै पियै घट अमृत सब में समता चहई।

राम विष्णु की झांकी ताके सन्मुख हर दम रहई।

श्री नारायण शरण कहैं तन तजि नहिं जग में ढहई।६।