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४६८ ॥ अनन्त श्री स्वामी सतगुरु नागा ॥(४)

 

य़ह भजन अति बारीक है, सब से सुलभ औ ठीक है।

गुरु वाक्य पत्थऱ लीक है, मानै न सो जग फीक है।१।

पढ़ि सुनि बकै सो पीक है, चलि नरक हर दम कीक है।

जानै जियत सो नीक है, छूटी गरभ की हीक है।२।

दोनों जहां सिर टीक है, वाके लिये सब सींक है।

नागा कहैं दुख छींक है, जो नाम धन पर बीक है।३।