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४६८ ॥ अनन्त श्री स्वामी सतगुरु नागा ॥(२)

 

नागा राम दास कहैं भक्तों, सुनिये राम नाम की तान।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो, खुलि जांय आंखी कान॥

ध्यान धुनी परकाश दशा लय, जहां सुधि बुधि बिसरान।

सिया राम की झाँकी हर दम, सन्मुख में ठहरान॥

नागिन जगै चक्र षट बेधैं,सातों कमल फुलान।

अमृत पियो सुनो घट अनहद सुर मुनि संग बतलान॥

अन्त त्यागि तन निज पुर राजो, आवागमन नसान।

पढ़ै सुनै औ गुनै जौन कोई, ता को हो कल्यान॥

सहज समाधि यही है जानो, सुर मुनि कियो बखान।

भांति भांति की उड़ैं सुगन्धैं, आनन्द करै उफ़ान।५।

 

नैनन ते शीतल जल जारी, रोम रोम पुलकान।

गद गद कंठ बोल नहिं फूटै, प्रेम में डूबो ग्यान॥

इड़ा पिंगला एक होंय तब, सुखमन नाड़ी जान।

सुखमन नाड़ी ऱहत चित्रणीं, तामें बज्रणीं मान॥

वाके भीतर ब्रह्म नाड़ि है, जा में तेज महान।

सुकुल धुवां सम भाषत जानो, र रंकार भन्नान॥

मान बड़ाई त्यागि के भक्तों बनि जावो मस्तान।

शान्ति दीनता की गोदी में करो सदा कुच पान॥

छिमा नारि संग ही संग डोलै, पल भरि नहिं अलग़ान।

नेक हटै तो माया गटकै ले बोलाय शैतान।१०।

 

जब सन्तोष पुत्र हो पैदा, मुद मंगल विज्ञान।

पांच तत्व औ पांचौ मुद्रा सोधि होहु पहलवान॥

पांच ब्रह्म पांचो देविन संग, करत नाम निज गान।

मन गुण प्राण जीव औ आतम, नागिन संग लै प्रभु में जान॥

सब लोकन से तार है जारी, नीक बेकार बयान।

नाना लीला सन्मुख होवै, निरखैं भक्त महान।१३।