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४६२ ॥ श्री निछावर शाह जी॥(२)

सुमिरन बिना गरियाय के जम पीटते फिर बांधते।

कहते निछावर शाह फिर चलि नर्क में हैं रांधते।

सुमिरन बिना बेज़ार होकर तन पे सांटी मारते।

कहते निछावर शाह कूटि के खून तन का गारते।

सुमिरन बिना खिसियाय नेकौं बोलते गहि कूटते।५।

 

कहते निछावर शाह जैसे गीध शव पर जूटते।

सुमिरन बिना हैं दिक्क पीवैं खून खावैं मास को।

कहते निछावर शाह वहँ पर को तुम्हारी आस को।८।