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४६२ ॥ श्री निछावर शाह जी॥

दोहा:-

राम नाम से तुक नहीं, कैसे होवैं पार।१।

कहैं निछावर शाह भा दोनों दिसि अंधियार।२।

जब तक रहै अशान्त मन तब ही तक अंधियार।३।

शान्ति मिली, उजियार भा कहैं निछावर पार।४।