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३०६ ॥ श्री कसनी साह जी ॥

(अपढ़)

 

  चौपाई:-

अहंकार की पिये शराब। लोभ क खाते सदा कबाब॥

जम पकड़ैं तब हो बेताब। तब किमि देवैं उन्हैं जवाब॥

नर्क में जायके उनको छोड़ैं। राम नाम ते जे मुख मोड़ैं॥

हाय हाय हरदम चिल्लावैं। फटकि फटकि के मुख को बावैं॥

दोहा:-

कामी क्रोधी तरि गये लोभी नर्क को जाँय।

बार बार जनमैं मरैं चौरासी चकरांय॥

बहुत बड़ा बिस्तार है कहं लगि को लिखि पाय।

यासे श्री रामै भजै अन्त में निजपुर जाय॥

 

चौपाई:-

मान बड़ाई सुनि खुश होवैं। सो चलि अन्त नर्क में रोवैं।

निंदा सुनि के क्रोध जो करहीं। सो भी जाय नर्क में परहीं॥

अस्तुति निंदा सम करि मानै। सो बसि पावै ठीक ठेकानै॥

कसनी साह अपढ़ की बानी। सोधि लेहु मैं हौं अज्ञानी॥