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२४१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(४)

अर रर भैय्या लिखौ कबीर।

सुखमन में परि मारिये गोता द्वैत नसाय।

अन्धे कह तन छोड़ि के सत्य लोक लो धाय।

भला दोनो दिसि वाकी जय होवै।४।