२४१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(३)
अर रर भक्तौं सुनौ कबीर।
तिरबेनी में जौन कोइ मन को दे नहवाय।
अन्धे कह तन त्यागि के निजपुर बैठै जाय।
भला दोऊ दिसि बड़ी बड़ाई हो।४।
अर रर भक्तौं सुनौ कबीर।
तिरबेनी में जौन कोइ मन को दे नहवाय।
अन्धे कह तन त्यागि के निजपुर बैठै जाय।
भला दोऊ दिसि बड़ी बड़ाई हो।४।