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२४१ ॥ शिव बालक जी ॥

पद:-

मन तुम नाम अमल पिओ भाई।

ध्यान प्रकाश समाधि मिलै औ रूप सामने छाई॥

सुर मुनि नित प्रति दर्शन देवैं प्रेम करैं उर लाई।

अनहद घट में हर दम बाजै सुनि सुनि हिय हर्षाई।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो जियतै लेहु कमाई।

शिव बालक कहैं अन्त छोड़ि तन निज पुर बैठहु जाई।६।