साईट में खोजें

१३ ॥ श्री सूर दास जी ॥


रेखता:-

लगावो प्रेम तन मन से मिलैं तब तुमको बनवारी ॥१॥

मनोहर श्याम की जोड़ी मधुर मुरली की धुनि प्यारी ॥२॥

बरनि छवि को सकै उनकी शेष शारद गये हारी ॥३॥

शरण में लीजिये अपनी पतित पावन ए गिरधारी ॥४॥


दोहा:-

प्रेम लगै तन मन पगै, कासे कहै सुनाय।

जहँ देखो तहँ श्याम ही, दूसर नहीं दिखाय ॥१॥


रेखता:-

अधर पर धर मधुर मुरली बजाई श्याम जब बन में ॥१॥

जहाँ थीं जो सखी जैसी पड़ी वह तान श्रवनन में ॥२॥

नहीं सुधि बसन भूषन की बिरह की लौ लगी तन में ॥३॥

शरण चरणों में सब आईं बसो हरि मेरे नैनन में ॥४॥