१२ ॥ श्री रामानन्द स्वामी जी ॥ छन्द:-नाम रूप औ लीला धामहिं स्वयं शब्दहिं जानिये ॥१॥ चित्त बृत्ति निरोध करि तब सत्य शब्दहिं मानिये ॥२॥