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॥ श्री हनुमानाष्टक प्रारम्भ ॥(४)

 

जहँ मारुत नंदन आप बसैं नित,

राम जन्म की भूमि अवध पुर माँही।

जिनके हिये में धनुबाण लिये,

सिय राम बसैं दिन रैन सदाहीं॥

दोऊ हाथ में बज्र गदा धरि कै,

खल नाश करैं जन लेत बचाहीं।

कहैं दास नागा धन बांके बली,

हनुमान गढ़ी सों गढ़ी कहुँ नाहीं॥